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9. पृथ्वी संवाद

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1.कुंती, भरणी, प्रथम अध्याय

 ब्रह्मा, अग्नि,सूर्य,इंद्र आदि देवता तथा यह संपूर्ण जगत प्रतीत होने पर भी आप से पृथक नहीं है। इसलिए अनेक देवताओं का प्रतिपादन करने वाले वेद मंत्र उन देवताओं के नाम से पृथक पृथक आपकी ही विभिन्न मूर्तियों का वर्णन करते हैं। वस्तुतः आप अजन्मा है; उन मूर्तियों के रूप में भी आपका जन्म नहीं होता।10/87/15/2 This perceivable world is identified with the Supreme because the Supreme Brahman is the ultimate foundation of all existence, remaining unchanged as all created things are generated from it and at last dissolved into it, just as clay remains unchanged by the products made from it and again merged with it. Thus it is toward You alone that the Vedic sages direct all their thoughts, words and acts. After all, how can the footsteps of men fail to touch the earth on which they live? 1महायोगी देवदेव जगतपते,  2कृष्णाय वासुदेवाय, 3आत्माराम शांताय 

4. द्वारिका कृष्ण स्वागत

 भगवान् श्रीकृष्ण आत्माराम हैं, वे अपने आत्मलाभसे ही सदा-सर्वदा पूर्णकाम हैं, फिर भी जैसे लोग बड़े आदरसे भगवान् सूर्यको भी दीपदान करते हैं, वैसे ही अनेक प्रकारकी भेंटोंसे प्रजाने श्रीकृष्णका स्वागत किया ⁠।⁠।⁠४⁠।⁠।  सबके मुखकमल प्रेमसे खिल उठे⁠। वे हर्षगद्‌गद वाणीसे सबके सुहृद् और संरक्षक भगवान् श्रीकृष्णकी ठीक वैसे ही स्तुति करने लगे, जैसे बालक अपने पितासे अपनी तोतली बोलीमें बातें करते हैं ⁠।⁠।⁠५⁠।⁠।  ‘स्वामिन्! हम आपके उन चरणकमलोंकोसदा-सर्वदा प्रणाम करते हैं जिनकी वन्दना ब्रह्मा, शंकर और इन्द्रतक करते हैं, जो इस संसारमें परम कल्याण चाहनेवालोंके लिये सर्वोत्तम आश्रय हैं, जिनकी शरण ले लेनेपर परम समर्थ काल भी एक बालतक बाँका नहीं कर सकता ⁠।⁠।⁠६⁠।⁠।  विश्वभावन! आप ही हमारे माता, सुहृद्, स्वामी और पिता हैं; आप ही हमारे सद्‌गुरु और परम आराध्यदेव हैं⁠। आपके चरणोंकी सेवासे हम कृतार्थ हो रहे हैं⁠। आप ही हमारा कल्याण करें ⁠।⁠।⁠७⁠।⁠।  अहा! हम आपको पाकर सनाथ हो गये; क्योंकि आपके सर्वसौन्दर्यसार अनुपम रूपका हम दर्शन करते रहते हैं⁠। कितना सुन्दर मुख है⁠। प्रेमपूर्ण मुसकानसे स्निग्ध चितवन! यह दर्शन तो